गुरुवार, अप्रैल 14, 2011

सामाजिक चेतना पर दस्तक देता नाट्य-संकलन “सोया हुआ शहर”

सामाजिक चेतना पर दस्तक देता नाट्य-संकलन “सोया हुआ शहर”

-राजेश ‘पंकज’


“सोया हुआ शहर” भले ही ‘अनिल’ का प्रथम नाट्य-संकलन है, दो कहानी संग्रहों और एक काव्य-संग्रह दे कर वह साहित्य के जगत में अपनी विशिष्ट पह्चान पहले ही बना चुके हैं। ‘अनिल’ की नयी पुस्तक इस दृष्टि से विशिष्ट है कि चण्डीगढ शहर का नाम हिन्दी नाटक-साहित्य के क्षेत्र में उभर रहा है। कहानी, कविता,समीक्षा, संपादन, अभिनय, निर्देशन, पटकथा लेखन जैसी विभिन्न विधाअओं द्वारा अपनी प्रतिभा का परिचय देने के बाद अनिल अपने इस नाट्य-संकलन “सोया हुआ शहर” को हिन्दी-साहित्य को दे कर इसे समृद्ध बना रहे हैं।

मेरे विचार से किसी भी नाट्य रचना की सफलता की कसौटी उसकी दृश्यात्मकता अथवा मंचनीयता होती है। यह विचार केवल मेरा नहीं बल्कि नाट्य विधा के महान मनीषियों का है। नाटक संकलन का शीर्षक इस के प्रथम एकांकी के साथ-साथ पुस्तक में सम्मिलित अन्य सभी नाटकों पर भी लागू होता है। लेखक प्रत्येक नाटक में मनोरंजन, संगीत तथा हास्य की चाशनी में लिपटी कटाक्ष/ की कड़वी गोली देकर समाज की विसंगतियों के प्रति दर्शकों को जागरूक करता चलता है।
शास्त्रीय सिद्धांतों की बात करें तो किसी भी कला या साहित्यिक विधा का उद्देश्य रस का परिपाक करके संवाद स्थापित करना होता है और नाटक विधा की यह पहली शर्त है। इस संग्रह के लगभग सभी नाटकों के मंचन के दौरान दर्शकों की जोरदार प्रतिक्रिया इस की पुष्टि करती रही है। किसी महान नाटककार ने नाटक के विषय में कहा था कि नाटक कुनीन की कड़वी दवा नहीं जिसे आप कैमिस्ट से खरीद कर घर लाएं, यह तो किसी अच्छे रेस्त्रां में लज़ीज़ भोजन करने जैसा है, जिसका स्वाद आप वहां बैठ कर लें और सुगन्ध सांसों में भर कर घर लौटें।
इस संग्रह के नाटकों में क्या कहा गया है, कैसे कहा गया है, इस संबंध में विस्तार से दोहरा कर आपका बहुमूल्य समय न लेते हुए मैं चाहता हूं कि आप लोग इस कृति को स्वयं पढें, आनन्द उठाएं और अन्य लोग भी इनका मंचन नए दृष्टिकोणों से करके समाज के सामने रखें, ताकि शहर सोता न रहे।
जब भी दर्शकों के सामने नाटक प्रस्तुत करना होता था तो कुछ नया प्रस्तुत करने में यही दिक्कत देखी गयी कि सभी अच्छे नाटक पहले से मंचित हो चुके हैं। दर्शकों की रुचि को बनाए रखने के लिए नया कथ्य एवं कथानक ढूंढने वालों को इस संग्रह के आने से सुविधा होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
मैं अनिल पर यह दायित्व भी डालना चाहता हूं कि उनकी अनेकों कहानियां चर्चित और पुरस्कृत हो चुकी हैं जिनके कथ्य व कथानक मौलिक हैं, वह ऐसी कहानियों को भी रूपांतरित करके नाट्य रूप में लाएं। वह ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि वह स्वयं अभिनेता तथा निर्देशक हैं, रंगमंच की बारीकियों को समझते हैं।
मैं अनिल को उनके नाट्य संकलन ‘सोया हुआ शहर’ के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

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